यह तो आप जानते ही हैं कि स्टॉक मार्केट से बहुत पैसा कमाया जा सकता है और स्टॉक मार्केट पर बेस्ड हमारे पिछले पोस्ट स के जरिए तो आप यह भी समझने लगे हैं कि इस मार्केट में पैसा कमाना और गवाना दोनों ही पॉसिबल है
हां लेकिन सही स्ट्रेटेजी और पेशेंस की बदौलत प्रॉफिट गेन किया जा सकता है और बिना नॉलेज ज्यादा कमा लेने की चाहत में सब कुछ खोया भी जा सकता है तो इसी स्टॉक मार्केट के बारे में आपने यह भी जरूर जाना होगा कि में सिर्फ शेयर्स खरीद बेचकर ही फायदा नहीं लिया जा सकता पैसा कमाने और बढ़ाने के और भी बहुत से तरीके हैं जैसे कि ऑप्शन ट्रेडिंग इस पर बेस्ड पोस्ट अगर आपने नहीं देखा है तो जरूर देखिएगा
आपको बहुत फायदा होगा और आज हम जिस ट्रेडिंग के बारे में बात करने वाले हैं वह भी ऑप्शन ट्रेडिंग की तरह बहुत ही स्पेशल है थोड़ी सी कॉम्प्लेक्शन कमाने में मदद करने वाली ट्रेडिंग है क्योंकि इसका नाम है फ्यूचर्स ट्रेडिंग जो ऑप्शन ट्रेडिंग की की तरह एक डेरिवेटिव ट्रेडिंग है डेरिवेटिव ट्रेडिंग में आप कोई भी चीज खरीदे बिना उसकी असली कीमत पर दांव लगाते हैं यह चीज अंडरलाइन एसेट कहलाती है और यह शेयर करेंसीज जैसी चीज हो सकती है
अगर आपका अनुमान सही होता है तो आप प्रॉफिट गेन करते हैं और अगर अनुमान गलत हो जाता है तो पैसा डूब सकता है शेयर खरीदना कंपनी का एक हिस्सा खरीदना होता है जबकि डेरिवेटिव में शेयर खरीदे बिना सिर्फ उस शेयर की कीमत पर दाव लगाए या जाता है
यह डेरिवेटिव ट्रेडिंग मेनली दो टाइप्स की है
ऑप्शन ट्रेडिंग और फ्यूचर्स ट्रेडिंग और आज हम डिटेल में जानने वाले हैं
फ्यूचर्स ट्रेडिंग को जिसमें आपको पता चलेगा कि फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या होती है
यह ऑप्शन ट्रेडिंग से किस तरह अलग है स्टॉक ट्रेडिंग और फ्यूचर्स ट्रेडिंग में क्या डिफरेंस होता है कौन से इन्वेस्टर्स के लिए यह ट्रेडिंग सूटेबल होती है इससे कौन से फायदे होते हैं और इस तरह की ट्रेडिंग में कौन से रिस्क हो सकते हैं ऐसा बहुत कुछ फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बारे में जानने के लिए आप गवर्नमेंट सर्विस के इस पोस्ट में हमारे साथ अंत तक बने रहे और अब जानते हैं
फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बारे में थोड़ा डिटेल में
तो फ्यूचर्स एक तरह का फाइनेंशियल कांट्रैक्ट होता है जिसमें स्टॉक गोल्ड और ऑयल जैसे एक अंडरलाइन एसेट के फ्यूचर प्राइस पर बैट लगाई जाती है बिना उसे खरीदे इसमें आप यह तय करेंगे कि आगे आने वाले समय में एक फिक्स्ड डेट पर एक फिक्स्ड प्राइस पर आप उस एसेट को खरीदेंगे या फिर उसे बेचेंगे तो जिस प्राइस पर आप उस एसेट को खरी खरीदने या बेचने का वादा करते हैं उसे स्ट्राइक प्राइस कहा जाता है और इस वादे के लिए आपको स्मॉल अमाउंट ब्रोकर को देना भी होता है जिसे मार्जिन कहा जाता है यह एक तरह का सिक्योरिटी डिपॉजिट होता है फ्यूचर्स कांट्रैक्ट्स की एक्सपायरी डेट भी होती है जिस पर यह कांट्रैक्ट खत्म होता है और उस दिन आपको वह एसेट खरीदना या बेचना ही पड़ेगा
एग्जांपल के लिए अगर आपको लगता है कि अगले महीने सोने की कीमत बढ़ जाएगी तो आप एक फ्यूचर्स कांट्रैक्ट खरीदते हैं जिसका मतलब है कि आप अगले महीने एक फिक्स्ड प्राइस पर सोना खरीदने के लिए सहमत हो गए हैं यहां पर सोना अंडरलाइन एसेट है जहां ऑप्शन ट्रेडिंग में आप अंडरलाइन एसेट का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं
यानी उसमें यह जरूरी नहीं होता है कि आप उस एसेट को खरीदें या बेचे ही वहीं फ्यूचर्स ट्रेडिंग में आपको उस एसेट को फिक्स्ड टाइम पर फिक्स्ड प्राइस पर खरीदना या बेचना होगा ही आप उससे इंकार नहीं कर सकते इसीलिए तो फ्यूचर्स ट्रेडिंग की तुलना में ऑप्शन ट्रेडिंग को कंपैरेटिव कम रिस्की और ज्यादा फ्लेक्सिबल माना जाता है
इसी तरह स्टॉक ट्रेडिंग और फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बीच के डिफरेंस को अगर हम देखें तो यह दोनों ही स्टॉक मार्केट से जुड़े हुए हैं
लेकिन फिर भी इनमें काफी अंतर है स्टॉक ट्रेडिंग में आप किसी कंपनी के स्टॉक्स को खरीदकर उसकी हिस्सेदारी खरीदते हैं वहीं फ्यूचर्स ट्रेडिंग में आप एक कांट्रैक्ट खरीदेंगे जिसमें आप फ्यूचर में किसी एसेट की प्राइस पर केवल दांव लगाएंगे स्टॉक ट्रेडिंग में रिस्क कम होता है और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए इसे ज्यादा प्रेफर किया जाता है
जबकि फ्यूचर्स कांट्रैक्ट एक्सपायरी डेट के बाद खत्म हो जाएगा और इसमें बहुत ज्यादा रिस्क होता है यानी अगर आपने एक कंपनी के शेयर खरीदे हैं तो आप स्टॉक ट्रेडिंग कर रहे हैं लेकिन अगर आपने कांट्रैक्ट खरीदा है जिसमें आप फ्यूचर में उस कंपनी के शेयर को एक फिक्स्ड टाइम पर एक फिक्स्ड प्राइस पर खरीदने के लिए सहमत हुए हैं तो यह फ्यूचर्स ट्रेडिंग होगी
फ्यूचर्स ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज पर की जाती है और भारत के दो मेजर स्टॉक एक्सचेंज एनएससी यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बीएससी यानी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज है इन एक्सचेंज के जरिए डिफरेंट टाइप्स के फ्यूचर्स कांट्रैक्ट्स जैसे इंडेक्स फ्यूचर्स और कमोडिटी फ्यूचर्स में ट्रेड किया जाता है यूं तो भारत में फ्यूचर्स ट्रेडिंग कोई भी 18 साल की उम्र वाला पर्सन कर सकता है जिसके पास डीमेट और ट्रेडिंग अकाउंट्स हो
लेकिन अपनी रिस्की नेचर की वजह से फ्यूचर्स ट्रेडिंग उन ट्रेडर्स के लिए ही सूटेबल रहता है जो शॉर्ट टर्म में हाई रिस्क लेकर ट्रेडिंग करना पसंद करते हैं साथ ही जिन्हें मार्केट की अच्छी समझ हो और जिनके पास इस ट्रेडिंग के लिए मार्जिन अमाउंट भी अवेलेबल हो फ्यूचर्स ट्रेडिंग के बारे में यह सब जानने के बाद अब जानते हैं इसके टाइप्स के बारे में तो इसके दो मेन टाइप्स होते हैं इंडेक्स फ्यूचर्स और कमोडिटी फ्यूचर्स इंडेक्स फ्यूचर्स में शेयर बाजार के किसी इंडेक्स के फ्यूचर टाइम के प्राइस पर दांव लगाया जाता है और कमोडिटी फ्यूचर्स में किसी रॉ मटेरियल
जैसे सोना चांदी ऑयल या एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स के फ्यूचर प्राइस पर दांव लगाया जाता है इन्हें हम थोड़ा और अच्छे से समझते हैं
पहले इंडेक्स फ्यूचर्स को जानते हैं
जिसके लिए पहले इंडेक्स का मतलब समझना बेहतर होगा तो इंडेक्स कुछ चुनिंदा कंपनीज के शेयर्स का एक ग्रुप होता है जो शेयर मार्केट को रिप्रेजेंट करता है यह मार्केट की परफॉर्मेंस को मेजर करने के लिए यूज किया जाता है इंडेक्स यह बताता है कि मार्केट में ज्यादातर कंपनियां अच्छा कर रही हैं या बुरा अगर इंडेक्स बढ़ रहा हो तो इसका मतलब होता है कि ज्यादा ज्यादातर कंपनीज अच्छी परफॉर्मेंस दे रही हैं और अगर इंडेक्स कम हो रहा है तो कंपनीज की परफॉर्मेंस अच्छी नहीं है
निफ्टी 50 और सेंसेक्स दोनों के नाम तो आपने जरूर सुने होंगे
यह दोनों इंडेक्स ही हैं निफ्टी 50 में भारत की टॉप 50 कंपनीज के शेयर शामिल हैं और सेंसेक्स में भी 30 बड़ी कंपनियों के शेयर शामिल हैं जो बीएससी पर लिस्टेड टॉप कंपनीज हैं तो जब इन कंपनीज के शेयर्स की प्राइस बढ़ती है तो इंडेक्स का मूल्य भी बढ़ता है और जब इन कंपनीज के शेयर्स की प्राइस घटती है तो इंडेक्स का प्राइस भी घटता है इंडेक्स को जानने के बाद अब बात करें
इंडेक्स फ्यूचर की तो ये एक तरह का कांट्रैक्ट होता है जिसमें शेयर मार्केट के इंडेक्स जैसे निफ्टी 50 या सेंसक्स के फ्यूचर टाइम के प्राइस का अनुमान लगाया जाता है उस पर दांव लगाया जाता है यह इस तरह काम करता है कि आप यह अनुमान लगाते हैं कि इंडेक्स का प्राइस या वैल्यू बढ़ेगा या घटेगा उसके अकॉर्डिंग आप एक निश्चित संख्या में इंडेक्स फ्यूचर कांट्रैक्ट को खरीदते हैं या बेचते हैं कांट्रैक्ट में एक फिक्स्ड एक्सपायरी डेट भी होती है एक्सपायरी डेट पर अगर आपका अनुमान सही होता है तो आप प्रॉफिट कमाते हैं वरना आपको लॉस उठाना पड़ता है एग्जांपल के लिए मान लीजिए आप सोचते हैं
कि निफ्टी 50 इंडेक्स अगले महीने बढ़ेगा आप निफ्टी 50 के 100 कांट्रैक्ट खरीदते हैं अगर निफ्टी का प्राइस बढ़ता है तो आप फायदे में रहेंगे और अगर प्राइस घटता है तो आपको नुकसान उठाना पड़ेगा इ नेक्स फ्यूचर में आप टॉप कंपनीज के ग्रुप पर यानी इंडेक्स पर दाव लगाएंगे तो ऐसे में अगर मार्केट बढ़ेगा तो आप जीत जाएंगे और अगर मार्केट गिरेगा तो आपको जोर के झटके के साथ हार का सामना करना पड़ेगा इसका इस्तेमाल करके कम टाइम में ज्यादा पैसा कमाने का चांस मिल सकता है और यह इसकी एक खूबी है लेकिन यह हाई रिस्क लिए होता है क्योंकि अनुमान गलत हुआ तो सारा पैसा डूब गया इसे वाकई एक दांव ही कहा जाना बेहतर होगा और दाव में तो ज्यादा रिस्क होना नेचुरल ही है
अब बात करते हैं फ्यूचर ट्रेडिंग के सेकंड टाइप कमोडिटी फ्यूचर्स की जो कि ऐसा कांट्रैक्ट होता है जिसमें आप किसी कच्चे माल जैसे सोना तेल या गेहूं की फ्यूचर टाइम की प्राइस पर दांव लगा सकते हैं आपको पता होना चाहिए कि गोल्ड सिल्वर कॉपर जैसे मेटल्स वीट कॉर्न कॉटन जैसे एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स कैटल और पॉलिटिक जैसे लाइव स्टॉक शुगर रबर जैसे सॉफ्ट्स और ऑयल नेचुरल गैस और कोल कमोडिटी में आते हैं कमोडिटी पर दाव लगाने या इसके बारे में अनुमान लगाने के लिए आप आज एक फिक्स प्राइस पर भविष्य में उस कच्चे माल को खरीदने या बेचने का वादा करते हैं
अगर आपका अनुमान सही होता है कि कीमत बढ़ेगी या घटेगी तो आप पैसा कमा सकते हैं लेकिन अगर आपका अनुमान गलत होता है तो आप पैसा खो सकते हैं
फॉर एग्जांपल एक पेट्रोल पंप मालिक को लगता है कि अगले महीने पेट्रोल की कीमत बढ़ जाएगी वह आज ज्यादा पेट्रोल स्टॉक नहीं करना चाहता लेकिन आने वाले समय में यानी फ्यूचर में पेट्रोल को कम कीमत पर खरीदना चाहता है तो वह एक फ्यूचर कांट्रैक्ट खरीदता है जिसका मतलब है कि वह अगले महीने एक फिक्स्ड डेट पर एक फिक्स्ड प्राइस पर पेट्रोल खरीदने के लिए सहमत हो गया है
अब अगर पेट्रोल की कीमत बढ़ जाती है तो पेट्रोल पंप मालिक ने जो कांट्रैक्ट खरीदा था उसे वह मार्केट प्राइस पर बेचकर प्रॉफिट कमा सकता है और अगर उसका अनुमान या दांव गलत निकला और पेट्रोल की कीमत बढ़ने की बजाय घट गई तो उसे कांट्रैक्ट के अकॉर्डिंग पेट्रोल को उस कीमत पर खरीदना ही होगा जिस पर उसने डील की थी तो भले ही मार्केट प्राइस उससे कम ही क्यों ना हो तो ऐसे में उसे काफी नुकसान उठाना पड़ेगा इस तरह कमोडिटी फ्यूचर्स भी काफी रिस्की होता है क्योंकि कमोडिटी में आने वाली चीजों की कीमतें कई रीजन से बदल सकती हैं जिससे आपका अनुमान गलत हो सकता है
इस तरह फ्यूचर्स ट्रेडिंग के दोनों ही टाइप्स अपने साथ हाई रिस्क लेकर चलते हैं और जो ट्रेडर्स कमोडिटी की समझ रखते हैं और उस पर दाव लगाना चाहते हैं उ उनके लिए कमोडिटी फ्यूचर्स बेहतर ऑप्शन हो सकते हैं और जो ट्रेडर्स पूरे मार्केट में इन्वेस्ट करना चाहते हैं और रिस्क को थोड़ा कम रखना चाहते हैं उनके लिए इंडेक्स फ्यूचर्स बेहतर ऑप्शन माना जाता है और इस तरह अब आप यह जान चुके हैं कि फ्यूचर्स ट्रेडिंग क्या होती है यह किस तरह काम करती है इसके टाइप्स कौन से हैं किनके लिए यह बेस्ट सूटेबल ट्रेडिंग प्रैक्टिस हो सकती है तो उसके अकॉर्डिंग आप डिसीजन लीजिए
आगे बढ़ी वैसे ही पोस्ट यहीं पर कंप्लीट होता है इस जानकारी के बारे में आपकी क्या राय है हमें जरूर बता बताइएगा आपका प्यार और सपोर्ट शेयर कीजिएगा हमारी पूरी टीम के लिए और लाइक कर दिया है तो उे शेयर करना तो बिल्कुल बनता है और हां साथ ही अपने सवाल हमें भेजते रहिए मिलेंगे जल्दी ही तब तक के लिए मैं संदीप आपसे कहूंगी सब्सक्राइब कर लीजिए गवर्नमेंट सर्विस चैनल को ताकि कोई भी नोटिफिकेशन आप कभी भी मिस ना करें तो हमेशा अपने आपको को अपडेट रखे गवर्नमेंट सर्विस के साथ धन्यवाद
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